बस वो ही मेरी मंजिल है
मुझको मंजिल तक जाना है
अब तक तो मैं ही सोई थी,
बाधाओं का था ज्ञान नहीं
मेरे जगने की आहट से –
बाधाएं भी अब जाग पड़ीं |
देखें बाधाएं, हिम्मत से ताकत से मेरी बिंधती हैं
या मैं उन बाधाओं से डर जाती हूँ ........
डरना मुझको आया ही नहीं,
हटना मुझको आया ही नहीं,
बढ़ना ही मुझको आता है,
चलना ही मुझको आता है |
सौ-सौ बाधाएं आए तो,
आकर मुझसे टकराएँ तो,
टकराकर मेरे हिम्मत से-
मेरे पथ से हट जाएँगीं |
जिसमें हिम्मत, जिसमें ताकत
जिसमें शक्ति, जिसमें भक्ति-
जो मंजिल तक
पहुँचेगा ही, वो अपना
लक्ष्य बिंधेगा ही
- प्रो. पूनम कुमारी
भारतीय भाषा केंद्र
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय
दिल्ली